Monday, September 12, 2011

तहय्युर-ए-तक़रीर-ए-अक्स: लिहाफ -- इस्मत चुगतई

तहय्युर-ए-तक़रीर-ए-अक्स: लिहाफ -- इस्मत चुगतई: जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया क...

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