यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सूना करो, जो सूना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिकाना लिबास में
जो मैं बन-संवर के कहीं चलूं, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये खिजा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
नहीं बेहिजाब वो चाँद सा की नज़र का कोई असर नहीं
उसे तनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक ना ताका करो
-----: डॉ. बशीर बद्र
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सूना करो, जो सूना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिकाना लिबास में
जो मैं बन-संवर के कहीं चलूं, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये खिजा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
नहीं बेहिजाब वो चाँद सा की नज़र का कोई असर नहीं
उसे तनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक ना ताका करो
-----: डॉ. बशीर बद्र
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