Sunday, September 11, 2011

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते -- कतील शिफाई

तुम्हारी  अंजुमन  से  उठ  के  दीवाने  कहाँ  जाते
जो वाबस्ता हुए तुम से वो अफसाने कहाँ जाते

निकल  कर  दैर-ओ-काबा  से  अगर  मिलता  न  मैखाना
तो  ठुकराए  हुए  इन्सान  खुदा  जाने  कहाँ  जाते

तुम्हारी  बेरुखी  ने  लाज  रख  ली  बादाखाने  की
तुम  आँखों  से  पिला  देते  तो  पैमाने  कहाँ  जाते

चलो  अछा  हुआ  काम  आ  गई  दीवानगी  अपनी
वरना हम  ज़माने  भर  को  समझाने  कहाँ  जाते

'क़तील' अपना  मुक़द्दर  गम  से  बेगाना  अगर  होता
फिर  तो  अपने-पराये  हमसे  पहचाने  कहाँ  जाते.

-----: कतील शिफाई 

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