अभिव्यक्ति - मानवीय संवेदनाओं की ............. मैं गुजारना चाहता हूँ, जीवन की भागदौड़ और आपाधापी से, कुछ पल निकाल कर इन पंक्तियों के साथ. चंद अल्फाजों के साथ, जो किसी भी भाषा में हो सकते हैं, जो किसी भी शायर, किसी भी कवि, किसी भी साहित्यकार या किसी भी लेखक के हो सकते हैं. ये अल्फाजें शाएरी हो सकती हैं, ग़ज़ल हो सकती हैं, कविता हो सकती हैं, गद्द्य या कहानिया.
Monday, September 12, 2011
बहुत दिन हो गए शायद सहारा कर लिया उसने -- वासी शाह...
तहय्युर-ए-तक़रीर-ए-अक्स: बहुत दिन हो गए शायद सहारा कर लिया उसने -- वासी शाह...: बहुत दिन हो गए शायद सहारा कर लिया उसने, हमारे बाद भी आखिर गुजरा कर लिया उसने. हमारा जिक्र तो उसके लबों पर आ नहीं सकता, हमें एहसास है हमसे कि...
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