Saturday, September 10, 2011

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आशंना हो जाईये - हशरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आशंना हो जाईये,
बन्दा परवार जाईये, अच्छा खफा हो जाइये.
 
राह में मिलिए कभी मुझसे तो अज़राह-ए-सितम,
होंठ अपने काट कर फ़ौरन जुदा हो जाइये.
 
जी में आता है की उस शोख-ए-तगाफुल केश से ,
अब न मिलिए फिर कभी और बेवफा हो जाइये.
 
हाय रे बे-इख्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर,
उस सरापा नाज़ से क्यूँ कर खफा हो जाइये. 
 
------: हशरत मोहानी

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