क्या उम्मीद करें हम उनसे जिनको वफ़ा मालूम नहीं, गम देंना मालुम है लेकिन गम की दवा मालूम नहीं.
जिन की गली में उम्र गवां दी जीवन भर हैरान रहे, पास भी आके पास ना आये जान के भी अनजान रहे, कौन सी आखिर की थी हमने ऐसी खता मालूम नहीं.
ए मेरे पागल अरमानों झूठे बंधन तोड़ भी दो, ए मेरी ज़ख़्मी उम्मीदों दिल का दामन छोड़ भी दो, तुमको अभी इस नगरी में जीने की सजा मालूम नहीं.
-----: ज़फर गोरखपुरी
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