कभी नजरें मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी नजरें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी ने आंख भी खोली तो सोने की नगरी में
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं.
कई काली स्याह रातें हमें इक पल की लगती हैं
कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी खुला दरवाज़ा खड़ी थी सामने मंजिल
कभी मंजिल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं
इक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के रिश्ते
वो रिश्ते जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं.
-----: शशांक शेखर
कभी नजरें चुराने में ज़माने बीत जाते हैं
किसी ने आंख भी खोली तो सोने की नगरी में
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं.
कई काली स्याह रातें हमें इक पल की लगती हैं
कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं
कभी खुला दरवाज़ा खड़ी थी सामने मंजिल
कभी मंजिल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं
इक पल में टूट जाते हैं उम्र भर के रिश्ते
वो रिश्ते जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं.
-----: शशांक शेखर
badhiya likha hai shashank bhai.
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