शबनम  के  आंसू  फूल  पर  ये  तो  वही  किस्सा  हुआ 
आँखें  मेरी  भीगी  हुईं   चेहरा  तेरा  उतारा  हुआ 

अब  इन  दिनों  मेरी  ग़ज़ल  खुश्बू  की  इक  तस्वीर  है 
हर  लफ्ज़  गुंचे  की  तरह  खिल  कर  तेरा  चेहरा  हुआ 

मंदिर  गए  मस्जिद  गए  पीरों  फकीरों  से  मिले 
इक  उस  को  पाने  के  लिए  क्या  क्या  किया  क्या  क्या  हुआ


शायद  इसे  भी  ले  गए  अच्छे  दिनों  के  काफिले 
इस  बाग़  में  इक  फूल  था  तेरी  तरह  हंसता  हुआ 

अनमोल  मोती  प्यार  के, दुनिया  चुरा  के  ले  गई 
दिल  की  हवेली  का  कोई  दरवाज़ा  था  टूटा  हुआ