Sunday, September 11, 2011

बहुत दिन हो गए शायद सहारा कर लिया उसने -- वासी शाह

बहुत दिन हो गए शायद सहारा कर लिया उसने,
हमारे बाद भी आखिर गुजरा कर लिया उसने.
हमारा जिक्र तो उसके लबों पर आ नहीं सकता,
हमें एहसास है हमसे किनारा कर लिया उसने.
वो बस्ती गैर की बस्ती वो कूचा गैर का कूचा,
सुना है इश्क भी अब तो दोबारा कर लिया उसने.
सुना है गैर की बाँहों को वो अपना घर समझता है,
लगता है मेरा ये दुःख गवांरा कर लिया उसने.
भुला कर प्यार की कसमें वो वादे तोड़ कर "वासी"
किसी को जिंदगी से भी प्यारा कर लिया उसने.
-----: वासी शाह 

1 comment:

  1. वाह! वाह!!
    वासी साहब की कुछ रोमांटिक रचनाओं से भी अवगत करायें ।
    धन्यवाद ।

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